आज़ादी के 70 दशक बाद भारत-नेपाल सीमा से लगे चम्पावत ज़िले के गांवों तक कोई गाड़ी पहुंची है. अब तक सड़क मार्ग से महरूम इन गांवों में सड़क पहुंचने के साथ ही लोगों के चेहरों पर उम्मीद की इबारत साफ़ पढ़ी जा सकती है कि अब मूलभूत सुविधाएं भी मिलेंगी.
न्यूज़ 18 की टीम भारत-नेपाल सीमा से लगे अंतिम सीमांत गांव सीम चूका में पहुंची तो कुछ यही महसूस हुआ.
लेकिन केंद्र सरकर की अति महत्वाकांक्षी पंचेश्वर बांध परियोजना को लेकर रूपाली गाड़ तक बन रही 54 किलोमीटर की सड़क सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है. लेकिन अंतर्राषट्रीय सीमा से लगे सीम, चूका, खेत गांव के लोगों को यह गणित शायद ही समझ आए.
उन्हें तो यह पता है कि सड़क के रास्ते विकास आता है. बिजली, पानी और व्यापार घरों तक पहुंचता है.
रोज़गार और भविष्य के लिए राज्य के युवा अपने घर छोड़ रहे हैं और इस पलायन के चलते खाली पड़े घर खंडहर हो रहे हैं और खेत खलिहानों उजाड़. ऐसे में पहाड़ में कई दशकों से पहाड़ जैसा जीवन जीने वाले बुजर्ग ही अब गांव में दिख रहे है.
अब सड़क आई है तो युवाओं के साथ ग्रामीणों की आँखें बेहतर रोज़गार, शिक्षा, स्वास्थ्य को भी आते देख रही हैं.
भारत-नेपाल की सीमा से लगे गांवों को जोड़ कर बन रही टनकपुर-जौलजीवी सड़क अब बुनियादी सुविधा से महरूम दर्जनों गांव को जोड़ने का काम करेगी और उम्मीद की जा सकती है कि पलायन रुकने से देश के सूचना तन्त्र के सजग प्रहरी के तौर पर काम करने वाले ग्रामीण अपनी जड़ों से जुड़े रहेंगे.
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