प्रदेश के ज़्यादातर निजी स्कूलों की बसें ऐसे ड्राइवर चला रहे हैं जिनका पुलिस वेरिफिकेशन नहीं कराया गया है. कई ऐसी बसें संचालित की जा रही हैं जिनके वैलिड परमिट तक नहीं हैं. कई ड्राइवरों के पास तो वैलिड लाइसेंस तक नहीं हैं. यह चौंकाने वाली जानकारी आपके लिए इसलिए ज़रूरी है क्योंकि आपके मासूम बच्चों की जान खतरे में है.
प्रदेश के तमाम निजी स्कूल परिवहन सेवाओं के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन नहीं कर रहे हैं. राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की टीम ने गढ़वाल और कुमाऊं दोनों मंडलों में पुनरीक्षण किया तो इस बात का खुलासा हुआ.
अब आयोग ने सख्ती दिखाते हुये मुख्य सचिव को पत्र लिखकर जरूरी कदम उठाने के लिए कहा है.
राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष योगेन्द्र खंडूड़ी ने मुख्य सचिव को जो पत्र लिखा है उसमें 56 बिन्दुओं पर पुनरीक्षण करने की बात गढ़वाल और कुमाऊं के दस-दस स्कूलों के बारे में दी जा रही परिवहन सेवाओं के बारे में लिखी है. आयोग ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन नहीं किया जा रहा है.
आयोग ने 23 बिन्दुओं के बारे में मुख्य सचिव को जानकारी दी है और कहा है कि ज़रूरी कार्रवाई के बाद आयोग को भी बताया जाए.
आयोग के पुनरीक्षण से जुड़ी खास बातों पर एक नज़रः-
किराए पर ली गई बसों पर स्कूल बस नहीं लिखा गया है.
बसों में ड्राइवर का नाम, मोबाइल नम्बर भी नहीं दर्ज किया गया है.
स्कूल बसों में स्पीड गवर्नर नहीं लगाए गए हैं.
बसों में अग्निशमन और फर्स्ट एड बॉक्स नहीं रखे गए.
बसों में जीपीएस और सीसीटीवी नहीं लगाए गए हैं.
बस कन्डक्टर के पास वैलिड लाइसेंस भी नहीं पाए गए.
बसों में लेडी अटेन्डेंट और गार्ड नहीं पाए गए.
निगरानी के लिए अध्यापक की तैनाती नहीं.
ड्राइवर और कंडक्टर का पुलिस वेरिफिकेशन भी नहीं.
कई बसों के वैलिड परमिट भी नहीं पाए गए.
ड्राइवरों का मेडिकल चेकअप नहीं किया गया.
अभिभावकों की शिकायतों को नज़रअंदाज किया गया.
जिन ड्राइवरों का कई बार चालान हो चुका है वे भी वाहन चला रहे हैं.
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