भारत और चीन की प्रभावशाली नीतियों से जलवायु परिवर्तन से निपटने में मिल सकती है मदद: स्टडी

रॉयटर्स | Updated Nov 15, 2017, 07:54 PM IST
<p>भारत में सौर ऊर्जा पर बढ़ रही है निर्भरता (फाइल फोटो)<br></p>
बॉन (जर्मनी)
ग्लोबल वॉर्मिंग कम करने के लिए अमेरिका ने जिस जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया है, उसे अब भारत और चीन मिलकर पूरा करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। भारत और चीन की प्रभावशाली जलवायु नीतियों के कारण ग्लोबल वॉर्मिंग का खतरा उतना गंभीर नहीं होगा, जितना पहले अनुमान लगाया गया था। बुधवार को एक अध्ययन में कहा गया कि अमेरिका की निष्क्रियता की भरपाई ये दोनों देश करेंगे। हालांकि इसका मतलब यह भी नहीं है कि स्थितियां काफी सुधर जाएंगी। अध्ययन के मुताबिक औसत वैश्विक तापमान लगातार बढ़ रहा है जबकि 2015 पैरिस डील का मकसद ग्लोबल वॉर्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस नीचे लाना है
साल पहले इसके 3.6 डिग्री से
पैरिस समझौते के तहत चीन अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के भरसक प्रयास कर रहा है। इसके तहत वह 2030 तक कार्बन उत्सर्जन काफी घटा देगा। उधर, भारत में भी कोयले के व्यापक इस्तेमाल को कम करने के प्रयास किए जा रहे हैं, जिससे उत्सर्जन कम हो। संयुक्त राष्ट्र के एक साइंस पैनल ने कहा है कि औसत वैश्विक तापमान में 3 डिग्री सेल्सियस (5.4F) की वृद्धि से गंभीर नतीजे भुगतने होंगे। इससे कोरल रीफ्स, अल्पाइन ग्लेशियर और आर्कटिक समर सी आइस और ग्रीनलैंड की बर्फ भी पिघल सकती है। इससे दुनियाभर में समुद्र का स्तर काफी बढ़ जाएगा।

पैरिस डील से अलग हो चुका है US
इनमें से एक रिसर्च ग्रुप के जलवायु विश्लेषक बिल हे ने कहा, 'इससे साफ है कि यहां लीडर्स कौन हैं। अमेरिका के पीछे हटने के बाद अब भारत और चीन इस दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं।' दरअसल, डॉनल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका को पैरिस डील से अलग कर लिया था। उन्होंने कहा है कि वह इसके बजाए अमेरिका के जीवाश्म ईंधन उद्योग में नौकरियों के अवसर बढ़ाने की कोशिश करेंगे।
बिल हे ने कहा कि अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि वैश्विक उत्सर्जन में कमी आ रही है। उन्होंने कहा, 'चीन और भारत के उत्सर्जन की रफ्तार घटी है लेकिन यह अब भी ज्यादा है। खासतौर से भारत में। वैश्विक उत्सर्जन पर अंकुश लगाने के लिए सबसे बड़ा कदम यह होगा कि कई देशों में कोल प्लांट्स पूरी तरह से बंद किए जाएं।' सोमवार को एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया था कि कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन 2017 में 2 प्रतिशत बढ़ सकता है। इसमें चीन से उत्सर्जन ज्यादा है। 
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